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Thursday, February 11, 2010

ग़ज़ल : भूल गए

ग़ज़ल

कुश्ती करना मेले जाना भूल गए
अपना सभ्याचार पुराना भूल गए

ढोला, माहिया, मिरज़ा गाना भूल गए
हीर की लंबी हेक लगाना भूल गए

खेल-खेल में गुम हो जाना जंगल में
आम के पेड़ पे रात बिताना भूल गए?

गाँव में मटमैले पानी के पोखर में
वो भैंसों के साथ नहाना भूल गए?

तैर के पार नदी को करना ज़िद कर के
खेत में आलू भून के खाना भूल गए?

पिज़्ज़ा बर्गर नूडल खाना सीख लिया
दूध, दही, घी मख्खन खाना भूल गए

"जिंगल बेल" सिखाया हमने बच्चों को
पर लोहड़ी का गीत सिखाना भूल गए

सुबह शाम हर छोटे-मोटे सुख-दुख पर
यारों के घर आना जाना भूल गए

सिंथैटिक रंगीन खिलौने पकड़ लिए
लकड़ी काट गुलेल बनाना भूल गए

किस मनहूस घड़ी में घर से निकले थे
लौट के अपने घर को आना भूल गए

( ढोला, माहिया मिरज़ा हीर - पंजाबी लोकगीत
हेक-पंजाबी लोकगीतों में ली जाने वाली एक प्रकार की तान )

रवि कांत अनमोल

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